महिलाएं तो 2010 में ही जीत गई थीं, हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक उनके पक्ष में, लेकिन सरकारें 10 साल खिलाफ खड़ी रहीं https://ift.tt/2wHO93T

नई दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महिलाओं के हक के बड़ा फैसला दिया है। फैसला महिलाओं के बराबरी के दर्जे से जुड़ा है। ऐतिहासिक फैसले से सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने की राह खुल गई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट 2011 में ही यह फैसला सुना चुका है। लेकिन केन्द्र ने फैसले के खिलाफ दोबारा अपील की थी।

बराबरी के हक की यह कानूनी लड़ाई 2003 में शुरू हुई थी, जब पहली बार दिल्ली हाईकोर्ट में शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत आने वाली महिला अफसरों ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। इसके बाद भी अलग-अलग मौकों पर दिल्ली हाईकोर्ट में इससे जुड़ी याचिकाएं दाखिल की गईं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं को कमांड पोस्ट के भी योग्य बताया है। कोर्ट का यह फैसला उन स्थितियों में आया है जब केन्द्र ने महिलाओं की कमजोरी के संबंध में तर्क अदालत में रखे थे। केन्द्र सरकार ने अपनी दलीलों में कोर्ट से कहा था- महिलाओं को कमांड पोस्ट इसलिए नहीं दी जा सकती, क्योंकि अपनी शारीरिक क्षमताओं की सीमा की वजह से वे सैन्य सेवा की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगी। साथ ही पुरूष अफसर महिला अफसरों की बात नहीं सुनेंगे।

इसके उलट, महिला अफसरों के लिए इस केस को लड़ रही वकीलों ने सेना की महिलाओं की अनेक शौर्य गाथाएं अपने तर्क के रूप में रखीं। वकीलों ने मेजर मिताली मधुमिता, स्क्वाड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल सहित कई महिला अफसरों की बहादुरी का जिक्र किया। इस तरह 28 सालों में सेना में महिलाओं की भूमिका को साबित किया।

आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के तर्क कमजोर साबित हुए और महिलाओं के हक में फैसला आया। स्थायी कमीशन मिलने से महिलाएं अब सेना में 20 साल तक नौकरी कर पाएंगी। साथ ही वे पेंशन की भी हकदार होंगी। आज भास्कर 360 में पढ़िए आखिर किस तरह महिला अफसरों ने बराबरी का यह हक हासिल किया। साथ ही इस फैसले का असर क्या होगा।

सेना में महिलाएं-विवाद से जुड़ा हर पहलू जो आपको जानना चाहिए

1. विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
भारतीय सेना में महिला अफसरों की नियुक्ति 1992 से हुई। शुरुआत में महिला अधिकारियों को नॉन-मेडिकल जैसे- विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्जीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में 5 साल की अवधि के लिए कमीशन दिया जाता था, जिसे 5 साल और बढ़ाया जा सकता था। 2006 में महिला अधिकारियों को शाॅर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत 10 साल की सेवा की अनुमति दे दी गई। जिसे 4 साल और बढ़ाया जा सकता था। पुरुष 10 वर्ष की सेवा के बाद स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे, यह विकल्प महिलाओं को नहीं दिया गया।

2. अदालत में कैसे पहुंचा?
फरवरी 2003 में बबीता पूनिया ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने मांग की, कि सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अफसरों को भी स्थायी कमीशन दिया जाए। अक्टूबर, 2006 में मेजर लीना गौरव ने इसी संबंध में एक और याचिका दाखिल की। रक्षा मंत्रालय ने सितंबर 2008 में एक सर्कुलर जारी किया। जिसमें कहा गया कि जज एडवाेकेट जनरल (जेएजी) और आर्मी एजुकेशन कोर (एईसी) में आने वाली शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिला अफसरों को ही स्थायी कमीशन दिया जाएगा। सर्कुलर को मेजर संध्या यादव ने अदालत में चुनौती दी।

3. 2010 में आया था पहला फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2003, 2006 और 2008 की याचिकाओं को एक साथ सुना और मार्च 2010 में फैसला सुनाया। इसमें कहा कि 14 साल की सर्विस पूरी होने के बाद महिलाओं को भी पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन दिया जाए। यह आदेश शाॅर्ट सर्विस कमीशन के तहत भर्ती होने वाली महिलाओं के मामले में दिया गया था। अदालत ने महिलाओं को सेवा से जुड़े अन्य लाभ भी देने को कहा था। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि, 2 सितंबर 2011 को आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाईकोर्ट के इसी फैसले पर मुहर लगाई थी।

4. इस आदेश का क्या असर?
स्थायी कमीशन लागू होने की वजह से अब महिलाएं 20 साल तक सेना में काम कर सकेंगी। इसका मतलब यह है कि महिला सैन्य अधिकारी अब रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में काम कर सकती हैं। वे चाहें तो रिटायरमेंट से पहले भी नौकरी से इस्तीफा दे सकती हैं। अब तक शाॅर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में नौकरी कर रहीं महिला अधिकारियों को अब स्थायी कमीशन चुनने का विकल्प दिया जाएगा। स्थायी कमीशन मिलने के बाद महिला अधिकारी पेंशन मिलने की भी हकदार हो जाएंगी।

5. किन विभागों में मिलेगा स्थायी कमीशन?
थल सेना -
जज एडवोकेट जनरल, आर्मी एजुकेशन कोर, सिग्नल, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स- मैकेनिकल इंजीनियरिंग, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस और इंटेलिजेंस जैसे विभागों में स्थायी कमीशन मिलेगा।
वायुसेना और नौसेना - इसमें महिलाओं को स्थायी कमीशन का विकल्प है। महिलाएं कॉम्बैट रोल, जैसे- फ्लाइंग और ग्राउंड ड्यूटी में शामिल हो सकती हैं। नौसेना में भी लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पायलट और नेवल इंस्पेक्टर में सेवाएं दे सकती हैं।

6. हमारी स्थिति और दुनिया में महिलाएं?
भारतीय वायु सेना ही लड़ाकू पायलटों के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है। वायु सेना में तकरीबन 13.09% महिला अधिकारी हैं। थल और नौसेना में प्रतिशत क्रमशः 3.80 और 6 है। अमेरिका में 14.4% महिलाएं एक्टिव ड्यूटी फोर्स में शामिल हैं। रूस में करीब 3,26,000 महिलाएं बतौर सोलजर, मिलिट्री यूनिवर्सिटीज, लॉजिस्टिकल और मेडिकल सर्विस मेंं सिविल पर्सोनल अपनी सेवाएं दे रही हैं। चीन की सेना में 4.5% महिलाएं हैं। अभी तक कॉम्बेट पाइलेट और कॉम्बैट ट्रूप्स में कोई महिला शामिल नहीं है।

लेकिनफैसले के बावजूद केंद्र ने याचिकाकर्ता महिलाओं को नहीं दिया था स्थायी कमीशन का अधिकार
मार्च 2019 में रक्षा मंत्रालय ने एक आदेश निकाला जिसमें कहा गया कि 10 विभागों में काम कर रही महिलाओं को ही स्थायी कमीशन मिल सकता है। इस फैसले में उन महिला अधिकारियों को शामिल नहीं किया गया था जो पहले से सेवा में थीं। यानी इसका फायदा मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही मिलेगा। इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गईं, जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी। दिसंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आखिरी मौका दिया और कहा कि वह समान नीति लेकर आए। 17 फरवरी को निर्णायक फैसला आया।

भास्कर एक्सपर्ट



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प्रतिकात्मक फोटो।

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